

रायगढ़ । रायगढ़ ज़िले के तमनार तहसील का सामाजिक और आर्थिक परिदृश्य बदलने वाला है। महाराष्ट्र राज्य पॉवर जनरेशन कंपनी लिमिटेड (महाजेनको) की गारे पल्मा सेक्टर II (GP II) कोयला खदान परियोजना यहाँ विकास और समृद्धि की नई इबारत लिखने जा रही है। इस महत्वाकांक्षी परियोजना के चलते 14 गाँवों के लगभग 4000 परिवार न केवल करोड़पति बनेंगे, बल्कि रोजगार, बुनियादी ढाँचे और सामाजिक सुविधाओं के नए अवसरों का लाभ भी उठा सकेंगे।
14 गाँवों में उत्साह की लहर : इस परियोजना से सीधे प्रभावित होने वाले गाँव हैं – थिली रामपुर, कुंजेमुरा, गारे, सरैटोला, मुरोगाँव, रादोपाली, पाटा, चितवाही, ढोलनारा, झिंकाबहाल, डोलेसरा, भालुमुरा, सरसमल और लाइब्रा। यहाँ के लगभग 2000 हेक्टेयर निजी भूमि का अधिग्रहण किया जाएगा। परियोजना की घोषणा के बाद से इन गाँवों में गहमागहमी और उत्साह का माहौल है।
गाँव के लोग बताते हैं कि यह योजना उनके लिए केवल पैसों की बात नहीं है, बल्कि सम्मानजनक जीवन, रोजगार और बेहतर भविष्य का द्वार खोल रही है। स्थानीय युवाओं में इस परियोजना से मिलने वाले रोजगार अवसरों को लेकर खासा जोश देखने को मिल रहा है।
35 लाख प्रति एकड़ मुआवजा और 2435 करोड़ का पुनर्वास पैकेज : महाजेनको ने भूमि अधिग्रहण के लिए अभूतपूर्व मुआवजा पैकेज की घोषणा की है। प्रत्येक किसान को प्रति एकड़ 35 लाख रुपए मिलेंगे, जो इस क्षेत्र के सर्कल रेट के हिसाब से बेहद आकर्षक और ऐतिहासिक प्रस्ताव है। इसके साथ ही कंपनी ने 2435 करोड़ रुपए के पुनर्वास और पुनःस्थापन (R&R) पैकेज की भी घोषणा की है।
इस पैकेज के तहत प्रभावित परिवारों को नया आवास, सड़कों और बिजली जैसी आधारभूत सुविधाएँ, शिक्षा और स्वास्थ्य संस्थान, साथ ही रोज़गार प्रशिक्षण जैसी योजनाएँ शामिल हैं। प्रशासन का दावा है कि किसी भी परिवार को बिना उचित वैकल्पिक व्यवस्था के विस्थापित नहीं किया जाएगा।
ग्रामीणों की उम्मीदें और योजनाएँ : ढोलनारा गाँव के एक बुजुर्ग किसान ने उत्साह से कहा –
“हम बरसों से इस इलाके में विकास की राह देख रहे थे। अब जब हमारी ज़मीन का उचित दाम मिल रहा है, तो हमें लगता है कि बच्चों का भविष्य सुरक्षित होगा। हमने कलेक्टर से अनुरोध किया है कि भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया जल्दी शुरू की जाए।”
वहीं सरैटोला के एक अन्य किसान ने कहा – “कभी सोचा भी नहीं था कि ज़मीन बेचकर करोड़पति बन जाऊँगा। अब मैं अपने बच्चों को बड़े शहरों में पढ़ाना चाहता हूँ और गाँव में नया घर व किराना स्टोर खोलने की योजना बना चुका हूँ।”
गाँवों में पहले से ही कई लोग नए व्यवसायों की तैयारी कर रहे हैं। कुछ ने ट्रैक्टर और ट्रक खरीदने की योजना बनाई है ताकि निर्माण कार्य और खदान से जुड़ी आवश्यकताओं को पूरा कर सकें। कुछ ने होटल और भोजनालय खोलने का मन बनाया है, क्योंकि आने वाले समय में यहाँ बड़ी संख्या में लोग काम करने आएँगे।
3400 प्रत्यक्ष और हजारों अप्रत्यक्ष रोजगार : महाजेनको की यह परियोजना केवल मुआवजे तक सीमित नहीं है। कंपनी ने दावा किया है कि खदान के संचालन से 3400 प्रत्यक्ष और हजारों अप्रत्यक्ष रोजगार सृजित होंगे। इससे स्थानीय युवाओं को अपने ही क्षेत्र में काम मिलेगा और पलायन पर भी रोक लगेगी।
एक स्थानीय युवक ने बताया –
“अब हमें रोज़गार के लिए रायगढ़ या बिलासपुर नहीं जाना पड़ेगा। खदान में नौकरी के अवसर हमारे ही गाँव में उपलब्ध होंगे।”
7500 करोड़ का निवेश और 30,000 करोड़ का कर योगदान : महाजेनको इस परियोजना में लगभग 7500 करोड़ रुपए का निवेश कर रही है। खदान का लक्ष्य प्रतिवर्ष 23.6 मिलियन टन कोयला उत्पादन का है, जो महाराष्ट्र के प्रमुख थर्मल पॉवर प्लांट्स – चंद्रपुर (1000 मेगावॉट), कोराडी (1980 मेगावॉट) और पारली (250 मेगावॉट) – को ऊर्जा प्रदान करेगा। इसके साथ ही राष्ट्रीय ग्रिड में भी 3200 मेगावॉट से अधिक बिजली का योगदान होगा।
कंपनी के अनुसार, खदान के जीवनकाल में राज्य और केंद्र सरकार को लगभग 30,000 करोड़ रुपए रॉयल्टी, जीएसटी और अन्य करों के रूप में प्राप्त होंगे। इससे न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि महाराष्ट्र और पूरे देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी।
पर्यावरण संरक्षण की बड़ी पहल : खनन परियोजनाओं पर अक्सर पर्यावरणीय प्रभाव को लेकर सवाल उठते हैं। इसे ध्यान में रखते हुए महाजेनको ने 2,256.60 हेक्टेयर भूमि पर 56 लाख से अधिक स्थानीय प्रजातियों के पौधे लगाने का संकल्प लिया है। अगले 32 वर्षों में यह वृक्षारोपण कार्य होगा और हर हेक्टेयर में 2500 पेड़ लगाए जाएंगे।
कंपनी का कहना है कि यह अभियान उसके सतत विकास (सस्टेनेबिलिटी) कार्यक्रम का हिस्सा है और इससे न केवल पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने में मदद मिलेगी बल्कि स्थानीय जैव विविधता को भी संरक्षण मिलेगा।
सीएसआर से होगा समुदाय का सशक्तिकरण : महाजेनको ने स्पष्ट किया है कि वह अपनी शुद्ध आय का 2% कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (CSR) परियोजनाओं पर खर्च करेगी। इसमें स्थानीय शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएँ, कौशल विकास, महिलाओं और युवाओं के लिए स्वरोजगार प्रशिक्षण और सामुदायिक अवसंरचना के निर्माण जैसी गतिविधियाँ शामिल होंगी।
इससे स्थानीय लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों तरह का लाभ मिलेगा और गाँवों का सर्वांगीण विकास संभव होगा।
प्रशासन और कंपनी का साझा प्रयास : 5 अगस्त को प्रभावित 14 गाँवों में से सात गाँवों के प्रतिनिधियों ने जिला प्रशासन से मिलकर भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया जल्द शुरू करने का आग्रह किया। ग्रामीणों का कहना है कि वे विकास की इस प्रक्रिया में साझेदार बनना चाहते हैं।
महाजेनको के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर बताया – “यह केवल कोयला खदान नहीं है, बल्कि ऊर्जा सुरक्षा और ग्रामीण विकास का एक बड़ा मॉडल है। हम पूरी पारदर्शिता के साथ भूमि अधिग्रहण और पुनर्वास की प्रक्रिया को आगे बढ़ाएँगे।”
बदलाव की ओर बढ़ते कदम : संपत्ति सर्वेक्षण का कार्य शुरू हो चुका है और ग्रामीण प्रशासन को पूरा सहयोग दे रहे हैं। आने वाले महीनों में ज़मीन अधिग्रहण और पुनर्वास की प्रक्रिया को तेजी से आगे बढ़ाने की योजना है। स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि यह परियोजना यदि सही ढंग से लागू होती है, तो रायगढ़ जिला पूरे देश में समावेशी विकास का उदाहरण बन सकता है।
रायगढ़ की गारे पल्मा सेक्टर II कोयला खदान परियोजना केवल एक औद्योगिक योजना नहीं है, बल्कि यह ग्रामीण जीवन, अर्थव्यवस्था और भविष्य को नई दिशा देने का प्रयास है। 35 लाख प्रति एकड़ मुआवजा, 2435 करोड़ का पुनर्वास पैकेज, रोजगार के अवसर, पर्यावरणीय सुरक्षा और सामाजिक सशक्तिकरण के साथ यह परियोजना 14 गाँवों के 4000 परिवारों के लिए सुनहरे कल का द्वार खोल रही है। अगर सब कुछ योजना के अनुसार आगे बढ़ा, तो आने वाले वर्षों में रायगढ़ सिर्फ कोयला उत्पादन के लिए ही नहीं, बल्कि ग्रामीण विकास और सामुदायिक समृद्धि के मॉडल के रूप में भी पहचाना जाएगा।