

मुंगेली। नगर की पुण्यभूमि पर इन दिनों भक्ति का अनुपम संगम देखने को मिल रहा है। केशरवानी परिवार ( मोहडंडा वाले )द्वारा आयोजित श्री शिवमहापुराण कथा के शुभ अवसर पर परम श्रद्धेय गिरी बापू जी के सान्निध्य में श्रद्धालुओं का अपार जनसैलाब उमड़ पड़ा। कथा स्थल भक्ति, संगीत और साधना से ओतप्रोत हो उठा। चारों ओर सिर्फ “हर-हर महादेव” की गूंज और शिव नाम का महात्म्य प्रतिध्वनित हो रहा था। कथा के 8वें दिन सुबह से ही कथा स्थल पर श्रद्धालुओं का आना शुरू हो गया था। नगर सहित आसपास के ग्रामीण अंचलों से हजारों की संख्या में भक्तगण, महिला मंडल, युवा वर्ग और वृद्धजन शिव कथा श्रवण हेतु पहुंचे। पूरा वातावरण शंख-घंटी, ढोल-नगाड़ों, और भजनों की मधुर स्वर लहरियों से गूंज उठा।
श्रद्धालु महिलाएं परंपरागत वेशभूषा में भगवान शिव की भक्ति में लीन दिखीं, वहीं युवा वर्ग “बोल बम”, “शिव शंभू तेरा नाम” जैसे जयकारों से वातावरण को भक्तिमय बना रहे थे।
मुख्य यजमान मिथिलेश – कनक केशरवानी परिवार के सान्निध्य में आयोजित श्री शिवमहापुराण ज्ञानयज्ञ के दिव्य प्रसंग में परम पूज्य गिरी बापू जी ने अपने ओजस्वी वाणी से श्रद्धालुओं के अंतःकरण को शिवमय कर दिया। कथा का यह पावन दिवस ‘शिव तत्व’ की महिमा को समर्पित रहा, जिसमें उन्होंने बताया कि “शिव” कोई मूर्ति नहीं, बल्कि एक ऊर्जा, एक जीवनदृष्टि और अहंकार-मुक्त चेतना का प्रतीक हैं।
“शिव वह हैं, जो मौन में बोलते हैं, शून्य में प्रकट होते हैं और त्याग में प्रफुल्लित होते हैं।”
गिरी बापू जी के इन वचनों से पांडाल में ऐसा आध्यात्मिक कंपन हुआ कि क्षणभर को हर श्रद्धालु की आंखें मूंद गईं, और भीतर शिव के स्वरूप की झलक सी प्रतीत हुई।
प्रवचन के प्रमुख बिंदु:
“शिव कोई आकृति नहीं, एक आवृत्ति हैं।”
गिरी बापू जी ने कहा कि शिव का वास केवल कैलाश में नहीं, हमारे विवेक और संवेदना में होता है। शिव से जुड़ना है तो स्वयं से जुड़ो।
“विवेकशील मन ही शिवमय होता है।”
उन्होंने स्पष्ट किया कि यदि जीवन में विवेक नहीं, तो भले ही तुम मंदिरों में घंटियाँ बजाओ, वह शिव तक नहीं पहुँचता।
“जिसने अपने भीतर का ‘मैं’ मारा, उसी ने महादेव को पाया।”
शिव को पाने के लिए ‘मैं’ और ‘मेरा’ जैसे शब्दों से दूरी बनानी होती है। अहंकार शिवपथ की सबसे बड़ी बाधा है।
“धन से बड़ा धर्म है, और संतान से बड़ा संस्कार।”
बापू जी ने समाज को संदेश देते हुए कहा कि आज की सबसे बड़ी सेवा यह होगी कि हम अपने बच्चों को संपत्ति नहीं, संयम दें; सुविधा नहीं, संस्कार दें।
“रावण बाहर नहीं, भीतर है!”
प्रवचन में उन्होंने कहा कि — “हर दिन भीतर का रावण शिव को हराता है — क्रोध, लोभ, अहंकार, यही वह पुतले हैं जो हर बार जलते हैं पर कभी जलते नहीं!”
श्रवण और शरण — यही शिव की सच्ची भक्ति है
बापू जी ने श्रद्धालुओं को सत्संग की महिमा बताते हुए कहा कि कथा कहना उतना पूज्य नहीं, जितना कथा को मन-प्राण से सुनना। “कथा सुनना, कथा जीना और फिर उसे जीवन में उतरना — यही सच्चा शिव पूजन है।”
कार्यक्रम के आयोजक भाजपा जिलाध्यक्ष दिनानाथ केशरवानी, संतोष केशरवानी, आनंद केशरवानी, मिथिलेश केशरवानी, नवीन केशरवानी नें जानकारी दी की कल 11 जून शिवमपुराण की कथा का अंतिम दिन है, प्रवचन की समाप्ति पर पूरे पंडाल में हर-हर महादेव की गर्जना गूंज उठी। श्रद्धालुओं ने शिव की आराधना में तन्मय होकर आरती की, और एक दिव्य शांति का अनुभव करते हुए घर लौटे।