इमरजेंसी के पचास साल : मीडिया या तानाशाही की आंखों पर बंधी पट्टी (आलेख : राजेंद्र शर्मा)
इंदिरा गांधी के जिस इमरजेंसी निजाम के अब पचास साल हो रहे हैं, उसकी एक प्रमुख निशानी बेशक उन कुख्यात इक्कीस महीनों में प्रेस का दमन और उसकी स्वतंत्रता का…
ट्रम्प से इतना भय क्यों खा रहे हो, क्या डर है जो छुपा रहे हो? आलेख : बादल सरोज
बहुतई विचित्र समय है। उधर माय डिअर फ्रेंड ऐसा पिलकर पीछे पड़ा हुआ है कि चुप्प होने का नाम ही नहीं ले रहा और इधर उनके प्यारे मित्र मोदी ऐसी…
विशेष आलेख : कॉरपोरेट जगत में व्हिसलब्लोअर्स की दयनीय स्थिति।
•लेखकद्वय : परंजॉय गुहा ठाकुरता और आयुष जोशी, अनुवाद : संजय पराते अपने कामों को उजागर करने के लिए संरक्षित और प्रशंसित होने के बजाय, भारतीय व्हिसलब्लोअर को प्रतिशोध, कानूनी…
भारत में कृषि संकट और खेत मज़दूरों की बदलती प्रकृति (आलेख : विक्रम सिंह)
महाराष्ट्र के नांदेड जिले की मुखेड तालुका के अंबुलगा गाँव के खेत मज़दूर माणिक घोंसटेवाड को साल के कुछ महीनों में ही खेतों में काम मिलता है। उनको जून-जुलाई में…
