

मुंगेली/सरगांव। शिवनाथ नदी की गोद में बसा मदकू द्वीप न केवल प्राकृतिक सौंदर्य से सराबोर है, बल्कि यह स्थान धार्मिक, सांस्कृतिक और दार्शनिक दृष्टि से भी अद्वितीय महत्व रखता है। यहाँ मिली अष्टभुजी नृत्य गणेश की विलक्षण प्रतिमा और माण्डूक्य ऋषि की तपोभूमि इसे ऐतिहासिक धरोहर बनाते हैं।
कलचुरी कालीन अष्टभुजी नृत्य गणेश
मदकू द्वीप क्षेत्र में प्राप्त अष्टभुजी नृत्य गणेश की दक्षिणावर्त प्रतिमा 10वीं–11वीं शताब्दी की कलचुरी कला का अनुपम उदाहरण है।
यह प्रतिमा लाल बलुआ पत्थर पर बनी है।
भगवान गणेश को अष्टभुज रूप में नृत्यमग्न दर्शाया गया है।
हाथों में पाश, अंकुश, मोदक पात्र, त्रिशूल, परशु और वरद मुद्रा का अंकन है।
गजमुख पर अलंकरण, मस्तक पर जटाजूट और करुणामयी दृष्टि अंकित है।
दक्षिणावर्त सूँड़ शक्ति–साधना के गूढ़ रहस्य को उद्घाटित करती है। अंग–प्रत्यंग की लयात्मकता और मुद्रा नृत्यकला की गाम्भीर्यता तथा शिल्प–सौंदर्य का परिचय कराती है।
यह प्रतिमा लगभग 60–70 वर्ष पूर्व स्थानीय लोगों को मिली थी, जिसे पहले छोटी मढ़िया में रखा गया। बाद में श्री हरिहर क्षेत्र केदार द्वीप सेवा समिति ने लाल बलुआ पत्थर से मंदिर बनवाया और महाशिवरात्रि 2021 को प्राण–प्रतिष्ठा कर प्रतिमा की विधिवत स्थापना की।
माण्डूक्य ऋषि और उपनिषद्
मदकू द्वीप का नाम वास्तव में “माण्डूक्य” शब्द का अपभ्रंश है। ऋषि माण्डूक्य ने यहाँ दीर्घकालीन तप किया और माण्डूक्य उपनिषद् की रचना की। यह उपनिषद् वेदांत दर्शन का सार मानी जाती है।
इसमें “ॐ” को सम्पूर्ण ब्रह्मांड का स्वरूप बताया गया है —
“ॐ इत्येतदक्षरमिदं सर्वम्” अर्थात् ॐ ही सम्पूर्ण जगत् का प्रतिरूप है।
उपनिषद् में चेतना की चार अवस्थाओं का उल्लेख है :
1. जाग्रत (वैश्वानर) – स्थूल अनुभव
2. स्वप्न (तैजस) – सूक्ष्म अनुभव
3. सुषुप्ति (प्राज्ञ) – अविद्या में लीन निद्रा
4. तुरीय – जो इन तीनों से परे है, वही ब्रह्म का अनुभव है
गणेश की सूँड़ और उसका महत्व
गणेशजी को वक्रतुण्ड कहा जाता है। उनकी सूँड़ के तीन स्वरूप माने गए हैं :
बाईं ओर सूँड़ (इड़ा नाड़ी/चंद्र प्रभाव) – शांति, शिक्षा, समृद्धि और परिवार सुख की दात्री।
दाईं ओर सूँड़ (पिंगला नाड़ी/सूर्य प्रभाव) – शक्ति, पराक्रम, विजय और शत्रुनाश का प्रतीक। यह स्वरूप सिद्धिविनायक कहलाता है।
सीधी सूँड़ (सुषुम्ना) – दुर्लभ स्वरूप, जो कुंडलिनी जागरण, समाधि और मोक्ष से जुड़ा है।
शास्त्रों में सूँड़ की दिशा के अनुसार पूजन का विशेष महत्व बताया गया है –
बाईं सूँड़ : गृहस्थ जीवन में सुख–समृद्धि।
दाईं सूँड़ : विजय और त्वरित सिद्धि।
सीधी सूँड़ : आध्यात्मिक उत्कर्ष और मोक्ष।
मदकू द्वीप की अष्टभुजी नृत्य गणेश प्रतिमा न केवल कलचुरी कला का अनुपम उदाहरण है, बल्कि यह स्थान माण्डूक्य ऋषि की तपस्या और उपनिषद् की दार्शनिक गहराइयों से भी जुड़ा है। यहाँ गणेश प्रतिमा की सूँड़ के भेद जीवन के विभिन्न आयामों—गृहस्थ सुख, कार्यसिद्धि और मोक्ष—का संदेश देते हैं।